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राही ( कविता )
नमस्कार पाठकों,
आज मैं आप सबके बीच पहली बार ब्लॉग के जरिये अपनी कविता प्रस्तुत कर रही हूँ । आशा करती हूँ आपको यह पसंद आएगी ।
राह कठिन है, मंजिल दूर
साधन कम और शक्ति क्षीण
पर, चलना है तुमको अविराम
सरिता की गति कभी रुकी है
आने से पथ में चट्टान
आ जाएँ अगर पथ में बाधाएँ
तुम बना लो अपनी राह
अविचल होकर बढ़ो सदा तुम
लेकर प्रभु का पावन नाम
डिगा न पाये अपने पथ से
कभी तुम्हें आँधी, तूफान
छोड़ भले दें संगी साथी
अपने चाहे हो जाए पराये
हिम्मत कभी न हारो तुम
बढ़ते जाओ तुम अविराम !
- डॉ. सविता श्रीवास्तव
एम.ए., पीएच.डी., एल.एल.बी.
आज मैं आप सबके बीच पहली बार ब्लॉग के जरिये अपनी कविता प्रस्तुत कर रही हूँ । आशा करती हूँ आपको यह पसंद आएगी ।
राही
राही मत मानो तुम हारराह कठिन है, मंजिल दूर
साधन कम और शक्ति क्षीण
पर, चलना है तुमको अविराम
सरिता की गति कभी रुकी है
आने से पथ में चट्टान
आ जाएँ अगर पथ में बाधाएँ
तुम बना लो अपनी राह
अविचल होकर बढ़ो सदा तुम
लेकर प्रभु का पावन नाम
डिगा न पाये अपने पथ से
कभी तुम्हें आँधी, तूफान
छोड़ भले दें संगी साथी
अपने चाहे हो जाए पराये
हिम्मत कभी न हारो तुम
बढ़ते जाओ तुम अविराम !
- डॉ. सविता श्रीवास्तव
एम.ए., पीएच.डी., एल.एल.बी.
Comments
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 17 जुलाई 2021 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
संदेश देती सुंदर रचना
ReplyDeleteसतत बढ़ते रहने का सुंदर सन्देश !!सुंदर प्रयास !!
ReplyDeleteबढ़िया! पहली है पर बहुत प्रेरक है। हार्दिक शुभकामनाएं सविता जी।
ReplyDeleteबेहतरीन प्रेरक रचना प्रस्तुति
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