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जीवन संघर्ष (कविता)
जीवन संघर्ष
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जिंदगी के अध्याय में आते है कुछ ऐसे दिन
विचलीत होने लगता है मन
डगमगा उठते हैं संकल्प
जब छोड़ जाते है साथ स्वजन !
छा जाता चारो ओर अँधेरा जीवन में
हृदय डूबने लगता दुःख के सागर में
तब यह पागल मन
ढूंढता संबल आत्मीयता का
क्या आत्मीयता ?
इस स्वार्थ में डूबे हुए संसार से
तू माँग रहा अपनापन
क्या दे सकेंगे ये तुम्हें
गम, आँसू और आह के सिवा
भूल जा तू अपनापन !
जिंदगी संघर्ष का नाम है
और इन संघर्षों में तू अकेला है
तू ही क्यों ? चाँद भी तो एकाकी है
किन्तु देख उसकी ज्योत्स्ना
कितनी उज्जवल, कितनी शीतल है
तू चमक उस चाँद का
प्रज्ज्वलित रह दिनकर जैसा
जिंदगी तो चुनौती है यह दर्द नहीं
जिंदगी सूर्य का प्रज्ज्वलित तेज है
यह बादलों की तार्मस्त्रा नहीं
लेकर तेज सूर्य का, संबल प्रभु का
बढ़ निशंक जीवन पथ पर ।
- डॉ. सविता श्रीवास्तव
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Comments
Bhut sunder Kavita
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